Sunday, December 6, 2009

भाषा के पीछे की भाषा .......

ये पंक्तियाँ राज ठाकरे के भाषाई राजनीती पर ...............
अंग्रेजी सिरमौर्य बनाया, हिंदी पों की धूलों में ,
रखो मराठी भाषा पहले, तुम व्यवहार , उसूलों में !
भाषा के पीछे की भाषा , जनता खुबा समझती है,
पढ़े-लिखे हैं राज ठाकरे कॉन्वेंट स्कूलों में !!

                                   '' डॉ. ऍन . टी . खान ''

भारत में प्रचलित सभी भाषाओँ का विकास मूल भाषा संस्कृत से हुआ है ! अनेक भाषाएँ और रहन-सहन इस देश की अंतरात्मा हैं ! आज समाज को जहाँ एक सूत्र में सजाने की बात होनी चाहिए !जबकि आज की राजनीती भाषा और क्षेत्रीयता पर आधारित और केन्द्रित हो गयी है ! आज देश को एकत्रित होकर आतंकवाद और हिंसा का वीरोध करना चाहिए ! लेकिन कुछ राजनेता स्वार्थ वश भाषा की राजनीती करके देश को क्षेत्रवाद की आग में जलना चाहते हैं ! हिंदी का विरोध केवल दिखावा है ! इस मुद्दे का आम आदमी से कोई लेना-देना नहीं है ! क्योंकि अलग - अलग भाषा जानने वाले देश के हर हिस्से में रहते हैं! उनका केवल इस लिए विरोध की वो उस क्षेत्र की भाषा नहीं जानते !

आखिर हिंदी से उन क्षेत्रीय नेताओं को इलर्जी क्यों है ? क्या वे नेता खुद इमानदारी से यह कहा सकते हैं की वो या उनके परिवार का बच्चा क्षेत्रीय भाषाई स्कूल में पढ़ा है ?
                           
भारतीय भाषाओँ में हिंदी का दायरा बहुत ही व्यापक और प्रभावशाली है ! वर्तमान में हिंदी साहित्य समाज के लिए दिशा देने का एक सशक्त माध्यम है! जन जागरण और आजादी के आन्दोलनों में हिंदी की रचनाएँ लोगों में देशभक्ति का जश भारती थीं ! यदि हिंदी भाषी क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी राज ठाकरे जैसा व्यवहार करना शुरू कर दें तो फिर इस देश की एकता और संप्रभुता का क्या होगा !
इस पर पूर्वांचल के मशहूर शायर  डॉ. ऍन . टी . खान  की ये पंक्तियाँ ठीक बैठती है :
सुनो ऐ ठाकरे साहब , वतन के जर्रे जर्रे में ,
हमारी जिम्मेदारी है, मुहब्बत घोलानी होगी !
तेरे तेवर अगर अपना लें , सरे हिंदी भाषी तो ,
तुम्हे जैसे भी , संसद में हिंदी बोलनी होगी !!
                                   ''डॉ.ऍन.टी.खान''

मैं कहता हूं कि आप अपनी भाषा में बोलें, अपनी भाषा में लिखें। उनको गरज होगी तो वे हमारी बात सुनेंगे। मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा।*जिसको गरज होगी वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे तो हिंदी भाषा का दर्जा बढ़ेगा।
                                                                               महात्मा गांधी

अंग्रेजी का माध्यम भारतीयों की शिक्षा में सबसे बड़ा कठिन विघ्न है।...सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।"
                                                                               
महामना मदनमोहन मालवीय