Friday, December 11, 2009

सामन्ती युग की ओर भारत .........

केंद्र सरकार द्वारा पृथक तेलंगाना राज्य गठन की घोषणा करते ही मस्तिष्क में एक विचार आया की इस तरह देश के रहनुमा जो इस देश को चला रहे हैं, अपने राजनितिक हितों की खातिर देश को कौन सी दिशा और दशा में ले जा रहें हैं ! जिस प्रकार विगत कुछ वर्षों में छोटे राज्यों के हिमायती नेताओं ने अपनी राजनीती को पृथक राज्य गठन के लिए तेज किया है , इससे देश की अस्मिता और संप्रभुता को खतरा तो है ही, वरन देश पुनः क्षेत्रीयता की आग में जलने लगेगा ! छोटे राज्य होने से राज्य का विकास भले ही हो या न हो , परन्तु इन नेताओं का भला अवश्य होगा !
आज की राजनीती देश के विकास की नहीं वरन क्षेत्रीय हितों को लेकर किया जा रहा है ! जहा देश के साथ करोड़ भारतीयों को प्रति दिन २०/- रूपया भी भरण-पोषण के लिए नहीं मिलाता, ये नेता इनकी दशा को सुधारने के लिए आगे नहीं आते मगर क्षेत्रीयता और अलग राज्यों के मांग की राजनीती अवश्य करते हैं !
आजादी के बाद सरदार पटेल ने किस कदर मेहनत कर इस देश की छोटी-छोटी रियासतों को एक कर संप्रभु राष्ट्र का निर्माण किया ,मगर आज उन्ही के पद चिन्हों पर चलने वाले फिर देश को छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँट रहे है !
इस प्रकार हम फिर मध्यकालीन भारत के सामंती प्रथा की ओर एक कदम
बढ़ा रहे हैं ! जहाँ छोटे-छोटे राज्यों या कबीलों के सरदार (आज के मुख्यमंत्री) आपसी वैमनष्यता के कारण आम जनता के हितों की अनदेखी कर देते थे ! आज के ये स्वार्थी राजनीतिज्ञ जनता को सब्जबाग दिखा कर अपना उल्लू सीधा करने की फ़िराक में हैं!
ये शेर पूर्वांचल के मशहूर शायर डॉ एन टी खान द्वारा आज के परिदृश्य पर ...............
अँधेरे बढ़ गएँ हैं, रोशनी के बाग़ लगा।
बुझा ना पाए हवा, इल्म के चिराग लगा !
सियासत बाँट रही हैं, कई खानों में हमें,

तूँ एकता
के लिए हर घडी, दिमाग लगा !!