जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक परिघटना है ,मनुष्य की उत्पत्ति के पूर्व
भी हिमयुग समाप्त हुआ था । मेरे लेखो मे विन्दुवार विवरण दिया है
कृपा कर पढ़े ।विचार विमर्श करे तभी समझोते हों।
वैज्ञानिको को निम्न तथ्यो को स्पष्ट करना चाहिये.....
1..आज से कई लाख वर्ष पूर्व धरती पर फैला हिम युग समाप्त हो गया था
तब मानव जीवन का अस्तित्व नही था ।
2..तापमान बढ़ने से वायुमंडल के आयन क्षेत्रों मे स्थित रेडियो संवेगी कणो
पर भी प्रभाव होता अर्थात् रेडियो तरंगो का प्रसारण बाधित होना चाहिये था।
3..वायुमंडलीय तापमान बढ़ने से हवा के दाव ,उसके चलने की दिशा,और उँचाई
पर बढ़ते हुये प्रति 165 मीटर पर 1डिग्री सेल्शियश तापमान कम होता है ,इस दर
मे परिवर्तन आने चाहिये थे ।
4..पृथ्वी पर बहु आयामी वायुमंडलीय विवधताये है ,भूभाग के 20%हिस्से पर किये
गये अध्ययन के परिणामो से 80% क्षेत्रो के बारे मे राय जाहिर करना उचित नहीं है।
हमे निम्न लिखित सत्य पर ध्यान देना चाहिये .......
अ...प्रशांत तटीय ज्वालामुखी क्षेत्र "अग्नि वलय "और अन्य भूभागो मे फूट रहे ज्वालामुखी
हमारे क्रिया कलापो से कई गुना अधिक जहरीले गैसे वायुमँडल मे उड़ेल रहे हैं,अतएव
हम कार्बनडाइआक्साईड की मात्रा बढ़ने एवम् ग्रीन हाऊस प्रभाव के दुष्परिणाम से दुनिया को
क्यों डरा रहे हैं।
ब..सौर्यिक विकिरण को अवशोषित करने बाले उत्प्रेरक पदार्थ (जैसे सीमेंट कांक्रीट)आदि से अधोसंरचित
धरातलीय भूभाग अधिक मात्रा मे विकिरण अवशोषित कर निचले वायुमंडल मे तापमान ऊँचा बनाये
रखते हैं ,दुनिया की अधिकाँश मौसम प्रेक्षण शालाये शहरी भागों मे है।
स..धरातल पर ही जल रोके जाने से नदियों द्वारा महासागरो को स्वच्छ जल की आपूर्ति निरंतर घट रही है ।
बृहद् सिंचाई क्षेत्रो से जल सीधे वाष्पीकृत होकर वायुमंडल के तापमान को बढ़ा देता है।
अर्थात् हमे अफवाहो से सावधान रहना चाहिये ।थोड़े अंतराल से प्रथ्वी के समाप्त होने वाली भविष्यवाणियां
होती रहती है ।पर्यावरण के विगड़ने का भय दिखाया जा रहा है ।हमे आशाओं का सृजन करना चाहिये।
द्वारा : कमलेश कुमार दीवान
(अध्यापक एवम् लेखक)
'बिन उम्मीद का अतुल्य बंध'
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