Friday, May 31, 2013

खड्डा को उच्च शिक्षा की  ओर अग्रसारित करने के हमारा प्रयास तभी सफल होगा, जब आप सभी खड्डा निवासी हमारे प्रयास को और आगे बढाने में हमारी मदद करेंगे ! आप जब भी जैसे भी इस प्रचार को आप देखें आप इसका मौखिक प्रचार करें ! आप अपने साथियों और बच्चों के भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए हमें आप का साथ चाहिए ! आप को आपके इस सहयोग के लिए ............... ................. धन्यवाद !!!!

                                                                                         .............................. संजय जायसवाल !!!!

Friday, March 1, 2013

ट्रिपल फ़िल्टर टेस्ट

प्राचीन यूनान में सुकरात को महाज्ञानी माना जाता था. एक दिन उनकी जान पहचान का एक व्यक्ति उनसे मिला


सत्य अच्छाई उपयोगिता

और बोला, ” क्या आप जानते हैं मैंने आपके एक दोस्त के बारे में क्या सुना ?”

“एक मिनट रुको,” सुकरात ने कहा, ” तुम्हारे कुछ बताने से पहले मैं चाहता हूँ कि तुम एक छोटा सा टेस्ट पास करो. इसे ट्रिपल फ़िल्टर टेस्ट कहते हैं.”

“ट्रिपल फ़िल्टर ?”

” हाँ, सही सुना तुमने.”, सुकरात ने बोलना जारी रखा.” इससे पहले की तुम मेरे दोस्त के बारे कुछ बताओ , अच्छा होगा कि हम कुछ समय लें और जो तुम कहने जा रहे हो उसे फ़िल्टर कर लें. इसीलिए मैं इसे ट्रिपल फ़िल्टर टेस्ट कहता हूँ. पहला फ़िल्टर है सत्य.

क्या तुम पूरी तरह आश्वस्त हो कि जो तुम कहने जा रहे हो वो सत्य है?

“नहीं”, व्यक्ति बोला, ” दरअसल मैंने ये किसी से सुना है और ….”

” ठीक है”, सुकरात ने कहा. ” तो तुम विश्वास के साथ नहीं कह सकते कि ये सत्य है या असत्य. चलो अब दूसरा फ़िल्टर ट्राई करते हैं, अच्छाई का फ़िल्टर. ये बताओ कि जो बात तुम मेरे दोस्त के बारे में कहने जा रहे हो क्या वो कुछ अच्छा है ?”

” नहीं , बल्कि ये तो इसके उलट…..”

“तो”, सुकरात ने कहा , ” तुम मुझे कुछ बुरा बताने वाले हो , लेकिन तुम आश्वस्त नहीं हो कि वो सत्य है. कोई बात नहीं, तुम अभी भी टेस्ट पास कर सकते हो, क्योंकि अभी भी एक फ़िल्टर बचा हुआ है: उपयोगिता का फ़िल्टर. मेरे दोस्त के बारे में जो तू बताने वाले हो क्या वो मेरे लिए उपयोगी है?”

“हम्म्म…. नहीं , कुछ ख़ास नहीं…”

“अच्छा,” सुकरात ने अपनी बात पूरी की , ” यदि जो तुम बताने वाले हो वो ना सत्य है , ना अच्छा और ना ही उपयोगी तो उसे सुनने का क्या लाभ?” और ये कहते हुए वो अपने काम में व्यस्त हो गए

Tuesday, January 22, 2013

स्वामी विवेकानंद शार्ध शती समारोह के उपलक्ष्य में ..........................

                                          लक्ष्य पर ध्यान लगाओ
स्वामी विवेकानंद अमेरिका में भ्रमण कर रहे थे . एक जगह से गुजरते हुए उन्होंने पुल पर खड़े कुछ लड़कों को नदी में तैर रहे अंडे के छिलकों पर बन्दूक से निशाना लगाते देखा . किसी भी लड़के का एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था . तब उन्होंने ने एक लड़के से बन्दूक ली और खुद निशाना लगाने लगे . उन्होंने पहला निशाना लगाया और वो बिलकुल सही लगा ….. फिर एक के बाद एक उन्होंने कुल 12 निशाने लगाये और सभी बिलकुल सटीक लगे . ये देख लड़के दंग रह गए और उनसे पुछा , ” भला आप ये कैसे कर लेते हैं ?”

स्वामी जी बोले , “तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा दिमाग उसी एक काम में लगाओ. अगर तुम निशाना लगा रहे हो तो तम्हारा पूरा ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए. तब तुम कभी चूकोगे नहीं . अगर तुम अपना पाठ पढ़ रहे हो तो सिर्फ पाठ के बारे में सोचो . मेरे देश में बच्चों को ये करना सिखाया जाता है. ”

Thursday, September 6, 2012

संस्कृति सामान्य ज्ञान परीक्षा में सफल प्रतिभागियों को पुरस्कार प्रदान

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Monday, March 12, 2012

Monday, January 11, 2010

पगली - गोद भर गई है जिसकी पर मांग अभी तक खाली है



ऊपर वाले तेरी दुनिया कितनी अजब निराली है
कोई समेट नहीं पाता है किसी का दामन खाली है
एक कहानी तुम्हें सुनाऊँ एक किस्मत की हेठी का
न ये किस्सा धन दौलत का न ये किस्सा रोटी का
साधारण से घर में जन्मी लाड़ प्यार में पली बढ़ी थी
अभी-अभी दहलीज पे आ के यौवन की वो खड़ी हुई थी
वो कालेज में पढ़ने जाती थी कुछ-कुछ सकुचाई सी
कुछ इठलाती कुछ बल खाती और कुछ-कुछ शरमाई सी
प्रेम जाल में फँस के एक दिन वो लड़की पामाल हो गई
लूट लिया सब कुछ प्रेमी ने आखिर में कंगाल हो गई
पहले प्रेमी ने ठुकराया फिर घर वाले भी रूठ गए
वो लड़की पागल-सी हो गई सारे रिश्ते टूट गए

अभी-अभी वो पागल लड़की नए शहर में आई है
उसका साथी कोई नहीं है बस केवल परछाई है
उलझ- उलझे बाल हैं उसके सूरत अजब निराली-सी
पर दिखने में लगती है बिलकुल भोली-भाली-सी
झाडू लिए हाथ में अपने सड़कें रोज बुहारा करती
हर आने जाने वाले को हँसते हुए निहारा करती
कभी ज़ोर से रोने लगती कभी गीत वो गाती है
कभी ज़ोर से हँसने लगती और कभी चिल्लाती है
कपड़े फटे हुए हैं उसके जिनसे यौवन झाँक रहा है
केवल एक साड़ी का टुकड़ा खुले बदन को ढाँक रहा है

भूख की मारी वो बेचारी एक होटल पर खड़ी हुई है
आखिर कोई तो कुछ देगा इसी बात पे अड़ी हुई है
गली-मोहल्ले में वो भटकी चौखट-चौखट पर चिल्लाई
लेकिन उसके मन की पीड़ा कहीं किसी को रास न आई
उसको रोटी नहीं मिली है कूड़ेदान में खोज रही है
कैसे उसकी भूख मिटेगी मेरी कलम भी सोच रही है
दिल कहता है कल पूछूंगा किस माँ-बाप की बेटी है
जाने कब से सोई नहीं है जाने कब से भूखी है
ज़ुर्म बताओ पहले उसका जिसकी सज़ा वो झेल रही है
गर्मी-सर्दी और बारिश में तूफानों से खेल रही है

शहर के बाहर पेड़ के नीचे उसका रैन बसेरा है
वही रात कटती है उसकी होता वही सवेरा है
रात गए उसकी चीखों ने सन्नाटे को तोड़ा है
जाने कब तक कुछ गुंडों ने उसका ज़िस्म निचोड़ा है
पुलिस तलाश रही है उनको जिनने ये कुकर्म किया है
आज चिकित्सालय में उसने एक बच्चे को जन्म दिया है
कहते हैं तू कण-कण में है तुझको तो सब कुछ दिखता है
हे ईश्वर क्या तू नारी की ऐसी भी क़िस्मत लिखता है
उस पगली की क़िस्मत तूने ये कैसी लिख डाली है
गोद भर गई है उसकी पर मांग अभी तक खाली है
................जगदीश तपिश

इस कविता द्वारा कवि ने उन तमाम लड़कियों के बारे में
चित्रण किया है जो
बहकावे में आकर लोगों के हवस की
शिकार हो जाती हैं ! और बाद में
दर-दर की ठोकर खाने
के
लिए शर्मनाक जीवन जीने को मजबूर होती हैं !

Sunday, December 20, 2009

एक बरस बीत गया



एक बरस बीत गया

झुलासाता जेठ मास
शरद चांदनी उदास
सिसकी भरते सावन का
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया

सीकचों मे सिमटा जग
किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अम्बर तक
गूंज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया

पथ निहारते नयन
गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा
मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया


माननीय अटल जी की ये कविता हमें अतीत को भूल आने वाले नए अनुभवों की अनुभूति और नव सृजन पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है !
इस वर्ष को बीतने में अब कुछ ही दिन शेष बचे हैं, इस बीतते वर्ष में हमने क्या खोया है पाया ?इस पर विचार करते हुए हमे आने वाले नव वर्ष में कुछ नए स्वपन को साकार करना है !